गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

1411बाघों को बच्चो के लिए ही सही बचा लो ,


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


मेरे शेरो उठो, चलो शेर बचाए. जंगल का राजा आज रंक बनकर अपने अकेलेपन से डर रहा है. शेर की माँ को किसी ने मार दिया , किसी ने उसके बाप की खाल को अपने घर में सजाने के लिए उतार लिया . अब तो शक हो रहा है की कहीं वो भी तो मारा न गया हो , जिसके बारे में हम यहाँ बात कर रहे है. सरकारी आकडे बता रहे है कि 1411 बाघ बचे है, सोचना तो इस पर भी होगा की वाकई इतने बचे भी है या नहीं. क्यों की वर्ष 2003 की अधिकारिक जानकारी के मुताबिक देश में बाधों की कुल संख्या का 23 प्रतिशत मध्यप्रदेश में मौजूद था। मध्यप्रदेश में बाघों की यह संख्या 712 बताई गई. जिसमे पन्ना टाइगर रिजर्व में सबसे ज्यादा शेर बताये जा रहे थे. सेन कमेटी ने पन्ना टाइगर रिजर्व की रिपोर्ट में खुलासा किया की अब वहां एक भी बाघ नहीं है. यह क्षेत्र वर्ष 2008 से ही बाघविहीन हो गया है. एसे में 1411 में कितनी सचाई है ये तो जंगल ही जानता है.
शेर जंगल का राजा था, है, और रहेगा भी , लेकिन फर्क
सिर्फ इतना ही होगा की बस किताबो में ही . कल तक जब वो दहाड़ता था , तो पूरा जंगल काप जाता था . आज उसकी दहाड़ में दर्द की आवाज़ आती है . कल तक उसके कदमो की आहट सुनते ही सब बचाओ बचाओ कर के भागते थे , आज वो ख़त्म होने की कगार पर है , लेकिन वो बचाओ बचाओ भी नहीं चिलाता , कमबख्त राजा जो ठहरा. आखिर वो कैसे अपने ही जंगल में अपनी जिंदगी की दुहाही मांगे , और मांगे भी तो किस्से उस इन्सान से जो आज धरती का सबसे खतरनाक जानवर बन बैठा है . जिसकी पैसे कमाने हवास और शोक जंगल के शेर को जंगल के साथ खाता और खत्म करता जा रहा है .
1411 बाघ हमारा रास्ट्रीय पशु भी है . दुनिया के सबसे ज्यादा बाघ हमारे देश में ही हैं. शायद बाघों को मालूम था की हम इन्हें इतना बड़ा सम्मान देगें तभी ये यहा आकर बसे . लेकिन अब ये हमारी इंसानियत देख कर शर्मिंदा होते होगे की राष्ट्रिय सम्मान देकर किस तरह इन्हें मारा जा रहा है, बचाने की कोशिस भी नहीं हो रही है. ये दुर्भाग्य की बात है शेर के लिए भी और हमारे लिए भी. सरकार ने भी इन्हें बचने की लिए योजना बनाई लेकिन अमलीजामा न पहना पाई . सरकारी रिकार्ड कुछ कहते और जंगल की कहानी कुछ और ही बाया करती . नेता के भरोसे इन्हें छोड़ा भी नहीं जा सकता . आज हालत इतने नाजुक है की अब जरा सी लपरवाही बरती तो बाघ तारीख में दर्ज हो जाएगे .

अब जरा सोचो की हम अपनी आने वाली नस्ल के लिए क्या छोड़ेगे, पन्नो पर बाघों के चित्र, विकिपीडिया पर उसकी जानकारी , कहानियो में शेर की बहदुरी के किस्से , शेर मार जायेगा लेकिन घास नहीं खायेगा जैसी कहावते, ज्यादा से उदार हुआ और मांग बड़ी तो कमाई के लिए एक अध् फिल्म बनादेगे .या फिर रास्ट्रीय चिन्ह के रूप में चार मुह वाला शेर छोड़ेगे . लेकिन जब आने वाली नस्ल में से ही कोई सिरफिरा हमारा रास्ट्रीय पशु बाघ को देखने कि जिद कर बैठा तो सोच लो क्या दिखाओगे ..... क्या समझोगे....... क्या कहोगे......... की हम तो गुम थे कमाने में हमने कुछ नहीं कर सके ? या फिर बाघ को सहेज के रखेगे........
फ़ेसला आप के ही हाथ है बीच का कोई रास्ता नहीं है, जंगल के लिए नहीं , बाघ के लिए, अपने लिए न सही, देश के लिए न सही बच्चो के लिए ही सही बचा लो बाघों को.