मंगलवार, 18 सितंबर 2012

क्रिकेट डिप्लोमेसी! भारत एक कदम आगे या दो कदम पीछे

क्रिकेट डिप्लोमेसी! भारत एक कदम आगे या दो कदम पीछे 26/11 मुंबई हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से बातचीत प़र विराम लगाते हुए सख्त फैसला लिया था की जब तक पाकिस्तान, मुंबई के हमलावरों को सजा नहीं देता तब तक उससे रिश्ते बेहतर होने की सम्भावना नहीं है . बेशक भारत के सख्त रुख और दुनिया भर की मुखालफत के बाद, पाकिस्तान बैक फुट प़र चला गया था. कसाब के रूप में जो सवाल भारत के पास है उसका जवाब पूछने प़र पाकिस्तान अब भी बगलें झाकने लगता है. मुंबई हमलो के साथ ही भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट श्रंखला प़र भी रोक लगा दी गयी थी , लेकिन हाल ही में BCCI ने भारत - पाकिस्तान के बीच क्रिकेट की शुरुआत करने का फैसला लिया है , जो ये सोचने प़र मजबूर करता है की ये सब BCCI पैसे कमाने के लिए कर रहा है या इसके पीछे दोनों देशो के रिश्ते बेहतर बनाने की भी कोई मंशा हैं ? या फिर किसी तीसरी ताकत का दबाव ? खेल मेल कराता है, लेकिन इसके लिए मन औए मंशा दोनों ही साफ होनी चाहिए, जो की पाकिस्तान की तरफ से नहीं लगती . खेल डिप्लोमेसी की शुरुवात 70 के दशक में हुई थी. जब अप्रैल 1971 में 31st वर्ल्ड टेबल टेनिस चैंपियंसशिप में अमेरिका और चाइना ने एक दूसरे के साथ खेलने का फैसला किया था , जिसे नाम दिया गया था पिंगपांग डिप्लोमेसी , जो काफी हद तक अमेरिका और चाइना को पास लाने में कामयाब हुई थी . इसके बाद व्यापार की बातें और कई मुलाकातें हुईं , लेकिन अमेरिका और चाइना हमसाया मुल्क नहीं हैं यही वहज है की इसकी तुलना, क्रिकेट डिप्लोमेसी से नहीं हो सकती. सितम्बर के पहले हफ्ते में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्री इस्लामाबाद में मिले . दोनों मुल्को की मीडिया ने सौहार्दपूर्ण बातचीत और बेहतर रिश्तों के कसीदे पढ़े . पाकिस्तान की विदेश मंत्री हीना रब्बानी खर ने इतिहास को भुलाकर भविष्य की जानिब देखने की बात कही . जिस दौरान इस सौहार्दपूर्ण वातावरण में मेल मिलाप और स्वागत का मंचन हो रहा था, तक़रीबन उसी वक़्त लाहौर में मुंबई हमलों का मास्टर माइंड, जमात उद दावा का सरगना हाफिज़ सईद भारत के खिलाफ खुलेआम सड़को प़र ज़हर उगल रहा था , जैसे वो इससे पहले भी करता आया है . हाफिज़ सईद ने कहा की भारत के साथ ना तो तिजारत होगी और ना ही कोई बात, जैसा मौकिफ माजी में था ठीक वैसा ही आगे भी कायम रहेगा . उसकी बातो से साफ जाहिर होता है की वो अब भी भारत विरोधी साजिशों में लगा हुआ है जैसे 2008 और उससे पहले था . 2008 से लेकर अब तक हाफिज़ सईद प़र ऐसी कोई करवाई नहीं हुई जिसकी कल्पना भारत कर रहा था . उसे सिर्फ चंद दिनों तक नजरबंद रखा गया, उस नजरबंदी मे भी वो खुलेआम घूमता रहा , सड़कों की बजाय मस्जिद में भारत विरोधी भाषण देता रहा. 26/11 मुंबई हमलो को चार साल होने वाले हैं. इन चार सालो में पाकिस्तान ने ऐसा एक भी काम या कार्यवाई नहीं की जिसकी बुनियाद प़र उस मुल्क के साथ बेहतर ताल्लुकात रखे जाएँ. इन चार सालो मे जमात उद दावा और हाफिज़ सईद का दायरा कम होने की बजाय बढता ही गया . चार साल पहले मुंबई हमले के वक़्त जमात उद दावा सिर्फ एक कट्टरपंथी संगठन था लेकिन 4 साल बाद वो 40 जमातो वाला काउंसिल बन गया है , जिसमे पाकिस्तान की दहशतगर्द और सियासी जमाते शामिल हैं , जिसे नाम दिया गया है दिफ़ा ए पाकिस्तान काउंसिल, ये पूरी काउंसिल भारत विरोधी नजरिया रखती है . ISI और साबिक फौजियों की जमात भी इसमें शामिल है . हमारी इंटेलिजेंस एजेंसी अभी भी आगाह कर रही है की दहशतगर्द हमला करने की फ़िराक में हैं, लेकिन इसे जाने क्यों नज़र अंदाज किया जा रहा है. पाकिस्तान के साथ आसान वीसा पॉलिसी प़र हस्ताक्षर भी हो गए , वो सब भुला कर जैसा उसने 26/11 के वक़्त किया था . जब पाकिस्तान सख्त करवाई नहीं कर रहा है और ना ही करने का भरोसा दिला रहा है तो उस प़र भरोसा कैसे किया जा सकता है , ये सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है संसद प़र हमले का गुनाहगार मौलाना मसूद अजहर अभी भी पाकिस्तान में है . लेकिन उस प़र कोई करवाई नहीं हुई . उसे तो अब माँगा भी नहीं जाता है, शायद हमारे नेता उसे भूल गए हैं . मुझे समझ नहीं आ रहा है की जो बातें , जो तल्खी भारत ने मुंबई हमले के वक़्त इख़्तियार की थी वो अब कहाँ है ? कहाँ गए वो वादे , जब ठोस करवाई ना होने तक और 26/11 साजिश में शामिल सभी गुनाहगारों को सजा ना देने तक दूरी की बात कही गई थी . क्या ये सब मिथ्या था ? फिलवक़्त तो यही लग रहा है . अगर ऐसा नहीं है तो क्यूँ क्रिकेट खेलने की बात कही जा रही है , जबकि पाकिस्तान अभी तक सभी शर्तो को पूरी करने की बजाय उसे नकारता आया है . यही वजह है , जो सोचने प़र मजबूर कर रही है की इस क्रिकेट कूटनीति में भारत एक कदम आगे बढ़ रहा है या दो कदम पीछे.

गुरुवार, 6 सितंबर 2012

आरक्षण का स्वागत है !

आरक्षण का स्वागत है ! अगर 40 फिसद वोट पाने वाले दलित को सांसद बनाया जाये, विधायक बना दिया जाये, महापौर, पार्षद, सरपंच या फिर PM बना दिया जाये . बजाय उसके जो सवर्ण 80 फिसद वोट पाता है. करो बिल पास, की आने वाले 35 सालों तक राज्यसभा के सभी सांसद दलित होंगे . इन्ही परिस्थितियों में वो अपने समाज व जाती का उत्थान कर सकेगे . अन्यथा जो सियासत आरक्षण प़र खेली जा रही है उससे बीते 65 सालो में नतीजा कुछ नहीं निकला . अगर निकला होता तो शायद फिर से नए आरक्षण की जरुरत ना पड़ती. तय करो अब से जो भी भाजपा , कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी व क्षत्रिय पार्टी का अध्यक्ष होगा वो भी आने वाले 35 सालों तक दलित ही होगा. जो राजनेता देश के संविधान में संशोधन कर सकते है वो अपनी अपनी पार्टी के संविधान में संशोधन क्यो नहीं करते. इतने से कुछ ना होगा, तय करो की आने वाले 35 सालों तक जो व्यक्ति राष्ट्रपति बनेगा वो दलित होगा. तभी शायद SC, ST जैसे अति पिछड़े लोगो का उत्थान हो सकेगा. वो भी समाज में बराबरी या उससे ऊपर का दर्जा पाए सकेंगे . जिससे वो और उनके पूर्वज वंचित रह गए. लेकिन ये सब सिर्फ और ३५ बरसों तक ही, क्योंकी जो आज़ादी के 100 सालों बाद भी आरक्षण के बावजूद पिछड़ा रह जाता है उसका कुछ नहीं हो सकता. वैसे भी इस तरह का आरक्षण नहीं दिया जायेगा. क्योकि इससे चोट सीधे राजनेताओं को लगेगी. आरक्षण सिर्फ तुच्छ राजनीती का हिस्सा है . कोई उत्थान नहीं चाहता, ना ही कांग्रेस ना भाजपा , ना ही बसपा . सब के सब समाज को विभाजित करने और अपनी अपनी राजनीती की रोटिया सेक रहे हैं . अगर ऐसा नहीं है तो दस जनपथ को दलितों को दान कर देना चाहिए और स्वयं सोनिया गाँधी को सपरिवार दलितों की बस्ती में जाकर रहना चाहिए . बेशक उनकी सुरक्षा का पूरा इंतजाम हो , सुरक्षा तो झुग्गी मे भी हो सकती है लेकिन वहां वो सुविधा नहीं होगी . ये बात सिर्फ 10 जनपथ प़र ही नहीं, बल्कि हर उस नेता प़र लागू होती है जो हकीकत में दलितों का उत्थान चाहता है, लेकिन अफ़सोस अफोसोस घोर अफ़सोस , ऐसा कुछ नहीं होगा , ये सब राजनीती है . आरक्षण की ना..... ना.... वोट की !