आरक्षण का स्वागत है ! अगर 40 फिसद वोट पाने वाले दलित को सांसद बनाया जाये, विधायक बना दिया जाये, महापौर, पार्षद, सरपंच या फिर PM बना दिया जाये . बजाय उसके जो सवर्ण 80 फिसद वोट पाता है. करो बिल पास, की आने वाले 35 सालों तक राज्यसभा के सभी सांसद दलित होंगे . इन्ही परिस्थितियों में वो अपने समाज व जाती का उत्थान कर सकेगे . अन्यथा जो सियासत आरक्षण प़र खेली जा रही है उससे बीते 65 सालो में नतीजा कुछ नहीं निकला . अगर निकला होता तो शायद फिर से नए आरक्षण की जरुरत ना पड़ती.
तय करो अब से जो भी भाजपा , कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी व क्षत्रिय पार्टी का अध्यक्ष होगा वो भी आने वाले 35 सालों तक दलित ही होगा. जो राजनेता देश के संविधान में संशोधन कर सकते है वो अपनी अपनी पार्टी के संविधान में संशोधन क्यो नहीं करते. इतने से कुछ ना होगा, तय करो की आने वाले 35 सालों तक जो व्यक्ति राष्ट्रपति बनेगा वो दलित होगा. तभी शायद SC, ST जैसे अति पिछड़े लोगो का उत्थान हो सकेगा. वो भी समाज में बराबरी या उससे ऊपर का दर्जा पाए सकेंगे . जिससे वो और उनके पूर्वज वंचित रह गए. लेकिन ये सब सिर्फ और ३५ बरसों तक ही, क्योंकी जो आज़ादी के 100 सालों बाद भी आरक्षण के बावजूद पिछड़ा रह जाता है उसका कुछ नहीं हो सकता. वैसे भी इस तरह का आरक्षण नहीं दिया जायेगा. क्योकि इससे चोट सीधे राजनेताओं को लगेगी. आरक्षण सिर्फ तुच्छ राजनीती का हिस्सा है . कोई उत्थान नहीं चाहता, ना ही कांग्रेस ना भाजपा , ना ही बसपा . सब के सब समाज को विभाजित करने और अपनी अपनी राजनीती की रोटिया सेक रहे हैं . अगर ऐसा नहीं है तो दस जनपथ को दलितों को दान कर देना चाहिए और स्वयं सोनिया गाँधी को सपरिवार दलितों की बस्ती में जाकर रहना चाहिए . बेशक उनकी सुरक्षा का पूरा इंतजाम हो , सुरक्षा तो झुग्गी मे भी हो सकती है लेकिन वहां वो सुविधा नहीं होगी . ये बात सिर्फ 10 जनपथ प़र ही नहीं, बल्कि हर उस नेता प़र लागू होती है जो हकीकत में दलितों का उत्थान चाहता है, लेकिन अफ़सोस अफोसोस घोर अफ़सोस , ऐसा कुछ नहीं होगा , ये सब राजनीती है . आरक्षण की ना..... ना.... वोट की !