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बीते दिनों टीवी वाले किसी नेले टापू को दिखा रहे थे और उसे लखनऊ बता रहे थे . थोड़ी देर देख कर लगा की जो चोक चोराहे अपनी पुरानी ईमारत और अदभुत बनावट के लिए जाने जाते थे उनको जान कर नीली रोशनी में डुबोया गया था. जहाँ कभी पहले आप पहले आप कि रिवायत थी वहां से , हम ही हम है बाकि पानी कम है कि आवाजे सुने दे रही थी . टीवी पर लखनऊ कि इन तस्वीरों को देख कर लगा कि जिस लखनऊ में, मै गया था वो लखनऊ कुछ और ही था. उस लखनऊ को मेने दिन कि रौशनी में भी देखा था, और रात के अंधियारे में भी . लेकिन टीवी वाले जिस लखनऊ को दिखा रहे थे उसमे लखनऊ जेसी कोई बात नज़र नहीं आ रही थी. नीले रंग में डुबोये लखनऊ को देख कर मुझसे रहा नहीं गया मेने अपने मित्र को फ़ोन घुमा दिया. पंडित जी ये टीवी वाले जो लखनऊ दिखा रहे हैं क्या ये वही शहर है जहाँ तुम रहते हो जहाँ मै पिछले साल आया था . मायावी नगरी से किलस्ते हुए पंडितजी बोले हाँ ये वही निलखनऊ है . मुझे कुछ समझ न आरहा , अरे भैया यहाँ माया कि रैली होने वाली है लेकिन नील क्यों पोत दी गयी है, पंडित जी हस्ते हुए बोले ये क्या कम है कि माया ने हाथी नहीं दोडाये. उनकी बाते सुन कर मेने भी सोचा कि सस्ते में ही निपट गए . हाथी दोड़ा दिए जाते तो नीली रौशनी मै ना लाशे दिखती ना खून ही समझ मै आता.
नील में डूबी रात के पो फटते ही उसी लखनऊ से नयी खबर आने लगी. नीली रैली से कड़क कड़क हलके लाल नोट निकलने लगे . नीले नाटक कि नायिका माया को हजार हजार के नोटों कि माला पहनाई गई. ये खबर फैलते ही लखनऊ से दिल्ली तक सब जुट गए माला के नोट गिनने में. जिसे देखो वही सवाल करने लगा कि कितने करोड़ कि माला है , इतना पैसा कहाँ से आया, पैसा किसका है, कितने नोट लगे है माला में . अरे भैया क्या करोगे जान के, क्या फर्क पड़ता है कि पैसा किसका है ,किसी रईस कि तिजोरी का है , पार्टी कार्यकर्ता का है या फिर आम आदमी के हिस्से का है. और पता भी चल जाये तो क्या कर लोगे, क्या उखाड़ पाए हो अब तक माया के हाथी के पैर का एक भी नाखून . लोग पहली माला के नोट भी नहीं गिन पाए थे कि माया ने दूसरी नोटों कि माला पहन ली . कर लो जो कर सकते हो. कुछ को मिर्ची भी लग रही होगी, वो तर्क देंगे कि रोक तो लगा ही दी माये के पार्को पर . लेकिन भैया रोक लगा कर क्या उन हाथियों से वो पैसा बनोगे, जो पैसा उन्हें बनाने में खर्च हुआ है.
वाह रे माया तेरी माया... करोडो के शोख कोडी कि काया.... तेरे राज में नारी नीलम होती रही (बुंदेलखंड), लेकिन तू थी कि अपनी ही मूरत बनवाती रही, बहुजन से सर्वजन कि बरी आई तो बहन जी ने बता दिया कि दलितों, इंसानों से ज्यादा बेजान हाथी अजीज है . गरीब कि चमड़ी हड्डी से चिपकती गयी और बहन जी मोटे ताजे हाथी बनवाती चली गई . ये हाथी प्रेम ही है ऐसा नहीं होता तो करोडो के ना चलने वाले ना वोट डालने वाले हाथियों कि इतनी बड़ी बारात खड़ी नहीं करती. लेकिन गनीमत है कि ये हाथी बेजान है जान होती तो जाने क्या होता . अब कोई गरीब इन बेजान हाथियों को देखकर खुद ब खुद इसके नीचे दबता चला जाये तो इसमें बिचारी मायावती का क्या दोष.
हिंदुत्व कभी हारता क्यों नहीं है !
4 माह पहले
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