गुरुवार, 22 मई 2008

मंगलवार, 20 मई 2008

कत्ल ,कातिल और कयास

लग जाए तो तीरही तो तुक्का की तर्ज पर आज कल नॉएडा पुलिस चल रही हैउसके सरे तीर तुक्को मे बदलते जा रहे हैऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है , आरुशी हेमराज दोहरे हत्या कांड मे रोज नए कयास रोज नया कातिल . नॉएडा पुलिस की खुफिया गिरी तो देखो घटनास्थल का मुआयना किए बगेर ही कातिल की तलाश मे नेपाल घूम आई। हाला की वहा कुछ नही मिला , कयासी कातिल तो ख़ुद मापने कत्ल की नई कहानी ले आया पुलिस के लिए. फिफ क्या तबादला ,एस टी अफ की जाच,मिडिया कें सवाल , ऊपरसे डंडा आनन फानन मे नतीजा.... एक नई कहानी नया कातिल....आख़िर कब तक ...
क्यो हमारी पुलिस किसी केस गंभीरता से नही लेती है ? क्यो उसे अन्ते मे सीबीआई ,
एस टी अफ ,
का सहारा लेना पड़ता है ? क्यो ख़ुद पुलिस शक के घेरे मे अति ? क्यो उस पर उंगली या उठनेलगाती है ? जाच मे लाखो फुकने के बाद भी ....

शुक्रवार, 16 मई 2008

अपनी बात

गुलिस्ता बनते गए मीटते गए ,करवा आते गए जाते गए ,समय का चकरा अपनी ही रफ्तार से उही घूमता रहा हम किस राह से चले थे किस मंजिल की तरफ की तरफ .....शयेद हम अपनी राह से भटक गए थे या यू कहे की व्हो ह्जो भी हुआ सब उम्र का तकाजा था ....समय ने फुर पलटी मारी और हमे उस मच्मच भरी जींदगी से अलग मन मंथन की दुनिया मे ला दीया । खेर व्हो उत पटक भी हमारी ही चाह थी और ये लेखनी भी हमारी ही सोच का ही नतीजा है । की हमे तलव्र से कलम की राह पर ले आई , वक्ते भी हमारा खूब साथ निभाता रहा जैसे पुराना याराना हो ....समय के साथ फिजा बदली ,माहोल बदला नया योवन ,नई बाहर हमारे लिए नए दवार खोलते गई नई दिशा मे आगे बदने को हम भी पुराने आत्मविश्वास के साथ चल पडे पत्रकारिता की और........