बुधवार, 30 जुलाई 2008

अपराधियों की पहली पसंद चाइनिज मोबाईल


नब्बे की दहाई मै जब श्रीप्रकाश शुक्ला जेसे अपराधियों ने मोबाइल का इस्तेमाल अपराध की दुनिए में किया तो पुलिस के सकते में आ गई .क्योकि उनका काम इतना तेज हो गया था उन्हें पकड़ना आसन नही था बड़ी मेहनत के बाद एसटी अफ ने मोबाइल फोन को ट्रेस करना शुरू किया तो अपराधियों के साथ सब लोगो के होश उड़ गए की अचानक पुलिस को क्या होगया की सरे माफिया बड़ी जल्दी पकड़ लेती है । माफिया भी हेरान की कोन है जो हमें क्रोस कर रहा है । भाई लोग इसी मुगालते मै अपने ही कितने साथियो को उड़ते गए की कोन मुखबरी कर रहा है , आज तक कितनी ही उलझी हुई गुतियो को मोबाईल के जरिये सुलझाया जा चुका है , पर एक बार फ़िर मोबाईल फ़ोन ने पुलिस को परेशानी मै बड़ा दी है , जिसको ना तो ट्रेस किया जा सकता ही नहीं लोकेशन ना तो रिकाड रखा जा सकता है , तभी तो अपराधियों की पहली पसंद बनते जारहे है चाइनिज मोबाईल। जिस फोन ने पुलिस के सर मै दर्द पैदा किया है वो बड़े ही पैमाने पर खुले बाजारों मै बिक रहे है वो भी बड़े ही वाजिब दामो मै , तेज आवज़ , मोबाईल कम इन्टरनेट , टीवी और साथ ही कुछ भी करो कोई रिकाड नहीं ना फोन करने वाले का नहीं उतने वाले का. अब सवाल ये उठता हे की पुलिस ये जानने के बाद भी इसपर कोई कदम क्यों नहीं utaati है.

रविवार, 27 जुलाई 2008

कब तक चालता रहेगा ये आतंकी खेल ...

गददी और गाड्डी के खेल की चर्चा अभी ख़त्म भी नही हुई थी की जमी ऐ हिन् मासूमो के खून से सुर्ख हो गई , निशाने पर था बेंगलुरु १५ मिनट ९ धमाके और सदियों का मातम बेंगलुरु की चिताओ की आग अभी बुजी भी नही थी की अहमदाबाद में फ़िर चिताए सजाने लगी फ़िर रुदन और मातम छ गया । चाँद लम्हे में शहर का नक्षा ही बदल गया । उस रात का आखरी धमाका अपने परिजनों के लिए विलाप करते लोगो की चीख और आसुओ को ख़त्म करने के लिए हुए । ये पहला मोका था जब दमको का आखरी निशाना अस्पताल को बनाया गया । मकसद साफ था जो दो शर शर शर २९ धमके दो वह भी ख़त्म । सरकारभी सकरी हुई और तुंरत चिता पर चिंता जताते हुए रहत राशिः की घोषणा की , पर क्या ये रहत राशिः किसी को रहत दी पाए गी ? दो दिन do shahar


दो दिन दो शहर २९ धमाके , मरने मारने वालो का कुछ पता नहीं । इस सिलसिले वार धमाको ने एक बार फिर खुफिया तंत्र को कटघरे मै लाकर खडा कर दिया है । पहले मेल फिर धमकी भरा फोन .... बचा सकते हो तो बचा लो , अब यहाँ धमाका होगा . फिर भी नहीं रुक सका मोंत का तांडव . आकिर हमारा खुफिया तंत्र नहीं भाप पता है , और इन दहशत गर्द तन्जिमो का मन बढता जा रहा है तभी तो वो जहा चाहे वाह ये आतंक का खेल, खेल जाते है चाहे सड़क हो या संसद .और हमारे हात या तो लाश को उठाने या आसुओ का पोषने के लिए है उत पाते है . अरबो रुपया खुफिया तंत्र अपने मुखबिरों पर मिटाता है जिसका कोई हिसाब नहीं फिर भी किसी बड़ी घटना को रोकने मै हमारा खुफिया तंत्र दीन हीन है . आकिर हम कब तक ऐसे तंत्र के सहारे अपनी जन को गिरवी रखते रहेगे .?


ये हमारा दुर्भाग्य ही है की हमरे राज नेता ऐसे वकत मै भी सियासी खेल खेलने से बज नहीं आते . विपछ सत्ता पछ पर आरोप लगता है की आतंकी हमले के लिए सर्कार को पहले ही सचेत कर दिया था . इधर केंद्र ने राज्य को सूचित कर दिया था ,उधर राज्य केंद्र को निक्कमी बता रही है कुल मिला के वही हुआ जो इन दहशतगर्दो ने किया . ये तो तू तेरी मै उसकी मै ही उलझे रहे गे
जयपुर, हैदराबाद ,मेलागाव मुंबई ,बनारस ,लखनऊ ,फैजाबाद के आतंक की तप्तिश जारी है कब तक चले गी कुछ पता नहीं ये भी नहीं पता की वे पकडाई मै भी आये गे या नहीं , अगर धोके से हत्थे लग भी जाते है तो भी क्या होगा इस का भी पता नहीं . संसद के दोषी अफजल को फासी मुकरर है पर किसी मै इतनी हिमत नहीं की उसकी फंदे की रस्सी मै गत लगा सके . आकिर हमारे नेता किस दिन का इंतजार कर रहे है की फिर से राजकीय ठाट से दुसरे मुल्क छोड़ के आया जरेगा . और हवाला दिया जाये गा चन चन्द लोगो का जो की हम रोज मर रही है ,कही धमाको से कभी धमाको की खबर सुन कर कभी लिख कर ...........कब थामे गा ये धमाको का खेल ?



















तुम कोन हो ..... आतंकवादी


तुम कोन हो ......आतंकवादी तुम कोन हो ? क्या यही तुम्हारा नाम है या माँ ने कुछ और कहा होगा तुम्हे मै नही जनता मै ये भी नही जानता की तुम किस धर्म ,जाती के हो पर इतना जरुर जनता हू की तुम इंसान तो नही हो अगर होते तो यू ना करते ........किसी माँ के जीगर के टुकड़े को यू ना उससे दूर करते । ना ही कीसी की मांग का सिनदूर मिटाते ,ना ही किसी बहिन का इक राखी का हाथ अलग करते , सब तो छीन लिया तुमने ..... देश की पहचान ,शहर की शांतीं , मोहल्ले की रोनक भी तुम खा गए , लोगो के चहरे का ताव्सुम भी तुम ने मसल दिया । राजू , गुड्डी ,पप्पू ,के खिलोनो को तुम ने अकेले छोड़ दिया ,अब उन खिलोनो से कोन खेलेगा .... बता सकते हो तुम की तुम कोन हो .... कोन हो तुम .......

रविवार, 20 जुलाई 2008

बस करो कुछ तो बोलो चुप्पी , तोड़ो दिल्ली








दो साल पहले जब दिल्ली आया तो यहाँ की बसों से पाला पड़ा , गद्दे में रुई जैसे ठुसे लोग , दक्कामुक्की , कोई किसी पर चढ़ रहा है तो कोई किसी पर गिर रहा है , ऊपर से दिल्ली की गर्मी उसपर कंडेक्टर की मीठी बोली .......फ़िर भी लगता रहा की यहाँ महिलाओ के लिए कितनी सुविधा है , रिजव सिट , इस्पेशल केबिन विशेश्स सुविधो से भरी दिल्ली की बस ......पर धीरे धीरे सरे भरम टूटते गएयहाँ की धकम पेल में किसतरह पिसती है लड़किया कैसी उनको छूने की होड़ लगी रहती है दिल्ली से नॉएडा की बसों में अक्सर देखने को मिल सकता हैऐसा ही एक वाक्य मेरी नजरो के सामने गुजरा लड़कियों का इस्पेशल केबिन जिस में किसी दुसरे को जाने नही दिया जाता सिवाए बस स्टाफ केउस खाचाखच भरे केबिन में एक लगभग ४५ साल का नोजवान बता हुआ था , जो उस लड़की को अपना अधिकार समझ के छूता जा रहा था , लड़की काफी बचने की कोशिश किए जा रहहि थी , पर वो तो उसकी खामोशी को रजामंदी मानके आगे बढता जा रहा थालोग भी टेडी निगाहों से सारा मंजर देख रहे थे और में भी बर्दाश करता जा रहा था मगर जब वो हद से बढ़ने लगा तो मुजसे रहा नही गया और मेने अपना विरोध जताया सकती से उसे wahaa से उठने को कहा , तो क्या उल्टा चोर कोतवाल को द्दाते भड़क पड़े बस का सारा का सारा सटाफ nobअत हाथापाई पर आई बिच रस्ते में गाड़ी खड़ी कर मुझे उतरने लगे वक्त की नजाकत समझ कर में भी उतर गयाउस दिन जाना की दिल्ली कितनी जागरुक है किस तरह खुली आखो में ये सोये है , इनकी आखो की सामने किसी को हवास का खिलौना बनाया जा रहा था पर कोई नि तो उए रोकने की कोशिश की नही मेरा साथ दिया उन्हों ने भी किनारा कर लिया जो कल इस का शिकार हुयी होगीऔर ये कम सिर्फ़ बस स्टाफ ही नही करता बल्कि कई पढेलिखे लोग भी नही चुकतेकई लोग तो बस इसी इंतजार में रहते है की लड़कियों से भरी बस मिल जाए सफर का मजा जाए गा .और इन सब को बढावा देत है तो सिर्फ़ चुप्पी वो खामोश रहा कर सब सहना .....बस करो चुप्पी तोडो .... कुछ to बोलो अपने लिए ही सही