बुधवार, 30 जुलाई 2008
अपराधियों की पहली पसंद चाइनिज मोबाईल
रविवार, 27 जुलाई 2008
कब तक चालता रहेगा ये आतंकी खेल ...
दो दिन दो शहर २९ धमाके , मरने मारने वालो का कुछ पता नहीं । इस सिलसिले वार धमाको ने एक बार फिर खुफिया तंत्र को कटघरे मै लाकर खडा कर दिया है । पहले मेल फिर धमकी भरा फोन .... बचा सकते हो तो बचा लो , अब यहाँ धमाका होगा . फिर भी नहीं रुक सका मोंत का तांडव . आकिर हमारा खुफिया तंत्र नहीं भाप पता है , और इन दहशत गर्द तन्जिमो का मन बढता जा रहा है तभी तो वो जहा चाहे वाह ये आतंक का खेल, खेल जाते है चाहे सड़क हो या संसद .और हमारे हात या तो लाश को उठाने या आसुओ का पोषने के लिए है उत पाते है . अरबो रुपया खुफिया तंत्र अपने मुखबिरों पर मिटाता है जिसका कोई हिसाब नहीं फिर भी किसी बड़ी घटना को रोकने मै हमारा खुफिया तंत्र दीन हीन है . आकिर हम कब तक ऐसे तंत्र के सहारे अपनी जन को गिरवी रखते रहेगे .?
ये हमारा दुर्भाग्य ही है की हमरे राज नेता ऐसे वकत मै भी सियासी खेल खेलने से बज नहीं आते . विपछ सत्ता पछ पर आरोप लगता है की आतंकी हमले के लिए सर्कार को पहले ही सचेत कर दिया था . इधर केंद्र ने राज्य को सूचित कर दिया था ,उधर राज्य केंद्र को निक्कमी बता रही है कुल मिला के वही हुआ जो इन दहशतगर्दो ने किया . ये तो तू तेरी मै उसकी मै ही उलझे रहे गे
जयपुर, हैदराबाद ,मेलागाव मुंबई ,बनारस ,लखनऊ ,फैजाबाद के आतंक की तप्तिश जारी है कब तक चले गी कुछ पता नहीं ये भी नहीं पता की वे पकडाई मै भी आये गे या नहीं , अगर धोके से हत्थे लग भी जाते है तो भी क्या होगा इस का भी पता नहीं . संसद के दोषी अफजल को फासी मुकरर है पर किसी मै इतनी हिमत नहीं की उसकी फंदे की रस्सी मै गत लगा सके . आकिर हमारे नेता किस दिन का इंतजार कर रहे है की फिर से राजकीय ठाट से दुसरे मुल्क छोड़ के आया जरेगा . और हवाला दिया जाये गा चन चन्द लोगो का जो की हम रोज मर रही है ,कही धमाको से कभी धमाको की खबर सुन कर कभी लिख कर ...........कब थामे गा ये धमाको का खेल ?
तुम कोन हो ..... आतंकवादी
तुम कोन हो ......आतंकवादी तुम कोन हो ? क्या यही तुम्हारा नाम है या माँ ने कुछ और कहा होगा तुम्हे मै नही जनता मै ये भी नही जानता की तुम किस धर्म ,जाती के हो पर इतना जरुर जनता हू की तुम इंसान तो नही हो अगर होते तो यू ना करते ........किसी माँ के जीगर के टुकड़े को यू ना उससे दूर करते । ना ही कीसी की मांग का सिनदूर मिटाते ,ना ही किसी बहिन का इक राखी का हाथ अलग करते , सब तो छीन लिया तुमने ..... देश की पहचान ,शहर की शांतीं , मोहल्ले की रोनक भी तुम खा गए , लोगो के चहरे का ताव्सुम भी तुम ने मसल दिया । राजू , गुड्डी ,पप्पू ,के खिलोनो को तुम ने अकेले छोड़ दिया ,अब उन खिलोनो से कोन खेलेगा .... बता सकते हो तुम की तुम कोन हो .... कोन हो तुम .......