दो साल पहले जब दिल्ली आया तो यहाँ की बसों से पाला पड़ा , गद्दे में रुई जैसे ठुसे लोग , दक्कामुक्की , कोई किसी पर चढ़ रहा है तो कोई किसी पर गिर रहा है , ऊपर से दिल्ली की गर्मी उसपर कंडेक्टर की मीठी बोली .......फ़िर भी लगता रहा की यहाँ महिलाओ के लिए कितनी सुविधा है , रिजव सिट , इस्पेशल केबिन विशेश्स सुविधो से भरी दिल्ली की बस ......पर धीरे धीरे सरे भरम टूटते गए । यहाँ की धकम पेल में किसतरह पिसती है लड़किया कैसी उनको छूने की होड़ लगी रहती है दिल्ली से नॉएडा की बसों में अक्सर देखने को मिल सकता है । ऐसा ही एक वाक्य मेरी नजरो के सामने गुजरा लड़कियों का इस्पेशल केबिन जिस में किसी दुसरे को जाने नही दिया जाता सिवाए बस स्टाफ के । उस खाचाखच भरे केबिन में एक लगभग ४५ साल का नोजवान बता हुआ था , जो उस लड़की को अपना अधिकार समझ के छूता जा रहा था , लड़की काफी बचने की कोशिश किए जा रहहि थी , पर वो तो उसकी खामोशी को रजामंदी मानके आगे बढता जा रहा थालोग भी टेडी निगाहों से सारा मंजर देख रहे थे और में भी बर्दाश करता जा रहा था । म मगर जब वो हद से बढ़ने लगा तो मुजसे रहा नही गया और मेने अपना विरोध जताया सकती से उसे wahaa से उठने को कहा , तो क्या उल्टा चोर कोतवाल को द्दाते भड़क पड़े बस का सारा का सारा सटाफ nobअत हाथापाई पर आई बिच रस्ते में गाड़ी खड़ी कर मुझे उतरने लगे वक्त की नजाकत को समझ कर में भी उतर गया । उस दिन जाना की दिल्ली कितनी जागरुक है किस तरह खुली आखो में ये सोये है , इनकी आखो की सामने किसी को हवास का खिलौना बनाया जा रहा था पर कोई नि न तो उए रोकने की कोशिश की नही मेरा साथ दिया उन्हों ने भी किनारा कर लिया जो कल इस का शिकार हुयी होगी । और ये कम सिर्फ़ बस स्टाफ ही नही करता बल्कि कई पढेलिखे लोग भी नही चुकते । कई लोग तो बस इसी इंतजार में रहते है की लड़कियों से भरी बस मिल जाए सफर का मजा आ जाए गा .और इन सब को बढावा देत है तो सिर्फ़ चुप्पी वो खामोश रहा कर सब सहना .....बस करो चुप्पी तोडो .... कुछ to बोलो अपने लिए ही सही
हिंदुत्व कभी हारता क्यों नहीं है !
4 माह पहले
1 टिप्पणी:
Bahut sahi mudda uthaya aapne.. ekdum sach aur Khara Khara.. Aap mane ya na mane lekin mujhe to yeh lagta hai ki aaj kal naujawano se jyada budho se ladkiyon ko khatra hai.. http://rohittripathi.blogspot.com
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